आदतों को कैसे लगा देती आग, एक बूढी मां की कहानी
बात हमारे शहर के ही एक घर की है। घर के मुखिया के गांव में देहांत के बाद बेटा अपनी मां को शहर में अपने घर ले आया। पति के अचानक चले जाने से गांव के उस हवेली नुमा मकान में अम्मा का जीवन दुष्कर हो गया था। पर बेटे ने मां की चिंता की और वह उन्हें अपने साथ शहर ले आया।
अम्मा को लगा केवल जगह ही बदल गई है। भले ही यह उनके पति का घर न हो, लेकिन है तो बेटे का। यही सोचकर वह एक सुई से लेकर अलमारी तक जोड़ी गई अपनी गृहस्थी को भूलकर बेटे के घर मन लगाने की असफल कोशिश करती हुई खुशी-खुशी रहने लगी।
इसके बावजूद कुछ ही दिनों में बेटे-बहू को उनकी कई आदतें खटकने लगीं। जैसे उनका कुछ लेना, कुछ चीजों को किफ़ायत से खर्च करना, उसका सदुपयोग करने की बात करना आदि। पर हद तो तब हो गई, जब बहू ने एक दिन झल्लाते हुए टोक ही दिया, ‘अम्मा, आप अपनी गांव वाली आदतों को क्यों नहीं छोड़ देतीं। यह शहर है, यहां गांव वाली आदतें नहीं चलती।’
बहू की बात सुनकर अम्मा को बुरा तो लगा, लेकिन अपने गुस्से को संभालते हुए वह बोलीं, ‘हां, बहू सही कहती हो, उनके चले जाने के बाद मुझे उनके साथ ही अपनी आदतों को भी जला देना चाहिए था। लेकिन मेरी मजबूरी है कि मैं ऐसा नहीं कर पाई, नहीं जला पाई मैं अपनी आदतों को उनके साथ।’ अम्मा का यह जवाब सुनकर, बहू भी शर्मिंदा हो गई। उसने अपनी गलती मानी और अम्मा से क्षमा मांगकर उनकी सेवा करने लगी।